Kavi Swayambhudev
महाकवि स्वयंभू देव
जैन शासन की कवि परंपरा में महाकवि स्वयंभू देव अपभ्रंश भाषा के कवि हैं। अनेक प्रमाणों के आधार पर इनका समय सन 734 से 840 के बीच का माना जा सकता है। कवि स्वयंभू के पिता का नाम मारुत देव और माता का नाम पद्मनी था। आपके पिता मारूत देव भी कवि थे। महाकवि स्वयंभू की रचनाओं का व्यापक प्रभाव आगामी काल के कवियों पर पड़ा है। महाकवि स्वयंभू देव के कई पुत्र थे जिसमें सबसे छोटे त्रिभुवन स्वयंभू थे। महाकवि स्वयंभू देव के जन्म स्थान के बारे में अनुमान लगाया जाता है कि वह दक्षिण कर्नाटक के रहने वाले हैं। महाकवि स्वयंभू देव की 6 रचनाएं प्राप्त होती हैं।
1. पउम चरिउ
2. णिट्ठ नेमि चरिउ
3. स्वयंभू छंद
4. पंचमी चरिउ
5. स्वयंभू व्याकरण
6. सोद्धय चरिउ
1. पंचमि चरिउ एक महाकाव्य है। इसमें लगभग 12000 श्लोक प्रमाण छंद रचना है। इस ग्रंथ में राम के जीवन की अनेक घटनाओं का वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ अपभ्रंश भाषा का मुकुट मणि कहा जाता है।
2. णिट्ठ नेमि चरिउ ग्रंथ को हरिवंश पुराण भी कहा जाता है। इसमें 18000 श्लोक प्रमाण छंद रचना है। इस ग्रंथ में भगवान नेमिनाथ के जीवन चरित्र और श्रीकृष्ण, यादवों की कथा का वर्णन किया गया है।
3. पंचमि चरिउ ग्रंथ में नाग कुमार की कथा का वर्णन है। यह ग्रंथ अप्राप्त है।
4. स्वयंभू छंद ग्रंथ में कवि स्वयंभू देव ने छंदों के संबंध में वर्णन किया है। इसमें अनेक प्रकार के छंदों का विस्तार से विवेचन किया गया है।
5. स्वयंभू व्याकरण ग्रंथ में अपभ्रंश भाषा के व्याकरण का बहुत गहराई एवं विस्तार से विवेचन किया गया है।
Shastra by Kavi Swayambhudev
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